उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में नंदा देवी का विशेष स्थान है। यह न केवल एक पर्वत शिखर का नाम है, बल्कि एक देवी के रूप में लोक आस्था का केंद्र भी है। नंदा देवी को उत्तराखंड की कुलदेवी माना जाता है, और उनसे जुड़ी अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक कथाएँ प्रचलित हैं।
नंदा देवी: एक परिचय
नंदा देवी, जिसे ‘हिमालय की रानी’ कहा जाता है, भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है जिसकी ऊँचाई 7,816 मीटर (25,643 फीट) है। यह पर्वत उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्रों के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, नंदा देवी भगवान शिव की पत्नी और हिमालय की पुत्री पार्वती का ही एक रूप हैं। उन्हें क्षेत्र की रक्षक देवी माना जाता है, जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
नंदा देवी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, नंदा देवी राजा कंस की पुत्री थीं, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय योगमाया के रूप में जाना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, नंदा देवी को पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। कहा जाता है कि पार्वती अपने पिता हिमालयराज की पुत्री थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। उन्होंने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और विवाह सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद, नंदा देवी को अपने मायके से ससुराल कैलाश जाना पड़ा, जिसे इस पर्वत चोटी की यात्रा से जोड़ा जाता है। इसीलिए नंदा देवी यात्रा को देवी की विदाई यात्रा भी कहा जाता है।
नंदा देवी की लोक आस्था और परंपराएँ
उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्र में नंदा देवी को अत्यंत श्रद्धा से पूजा जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से नंदाष्टमी और नंदा देवी राजजात यात्रा के अवसर पर की जाती है।
1. नंदाष्टमी:
नंदाष्टमी पर्व भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने में मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। कुमाऊँ के कई क्षेत्रों में नंदा देवी महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें भक्तगण देवी को पुष्प, नारियल, और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करते हैं।
2. नंदा देवी राजजात यात्रा:
नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा लगभग 280 किलोमीटर लंबी होती है और 19 दिनों तक चलती है। यह यात्रा चमोली जिले के कुरुड़ गाँव से शुरू होती है और होमकुंड में समाप्त होती है। इस यात्रा में देवी को अपने ससुराल कैलाश भेजने की परंपरा निभाई जाती है। यह यात्रा बारह वर्षों में एक बार आयोजित होती है और इसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
नंदा देवी और पर्यावरणीय महत्व
नंदा देवी पर्वत न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र नंदा देवी बायोस्फीयर रिज़र्व के अंतर्गत आता है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। यहाँ कई दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पाए जाते हैं, जैसे कि कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, और मोनाल (उत्तराखंड का राज्य पक्षी)।
निष्कर्ष
नंदा देवी उत्तराखंड के लोगों की सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यावरणीय धरोहर का प्रतीक हैं। उनकी लोककथाएँ, पर्व और यात्राएँ क्षेत्र की समृद्ध परंपरा को दर्शाती हैं। चाहे वे एक देवी के रूप में पूजी जाएँ या एक भव्य पर्वत शिखर के रूप में जानी जाएँ, नंदा देवी की महिमा अनंत है। उनकी कथा, आस्था और प्रकृति प्रेम की भावना उत्तराखंड की आत्मा में गहराई से रची-बसी है।